Tuesday, July 9, 2013

Kaash




काश वो रात वहीँ थम जाती,
काश ये सुबह कभी ना आती,
काश वो अनकही दास्ताँ कहने का वो पल आता,
काश हमेशा की तरह वो बात भी तू समझ जाता,
काश कि टकरार होती,
काश बिन मौसम ही सही, बरसात होती,
काश वो अटूट विश्वास आज  बयान हो पाता,
काश हमारे होने का फक्र, हमें समझ आता,
काश ये ख़ामोशी सिमट के भस्म हो जाती,
काश गिले शिकवों की लड़ी लव्जों में कही जाती,
काश ये इक्त्फाक हो जाता,
इस बार मैं रूठती और तू मनाता। 

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